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"दफ्तर" written by ©kashish

 "दफ्तर से लौटते वक्त मेरे लिये ये सामान ले आना", कहते हुए गीता ने सामान की लिस्ट अपने पति राकेश के हाथों में थमा दी...लिस्ट आधा सा देखकर राकेश ने कहा, "क्या तुम्हारे ये सामान की लिस्ट कभी खत्म ही नहीं होती" "और क्या मँगाया है मैंने बस घर का कुछ ज़रुरी सामान ही लिखा है" नाक चढ़ाते हुए गीता ने कहा "ठीक है, देखता हूँ अगर वक्त मिला तो"....कहकर राकेश ने अपना लेपटोप वाला बैग, बाइक की चाभी और हेलमेट उठा के दफ्तर की ओर चल दिया.... रास्ते में वो सिग्नल्स का रेड होना और फिर कुछ देर बाद ग्रीन हो जाना, बच्चों का एकजुट होकर स्कूल जाता समूह...ये सब नज़ारा राकेश रोज़ देखता था और फिर सीधा अपने दफ्तर जाकर काम में लग जाता था आज गीता ने घर पर राकेश के लिये कुछ खास बनाया था क्योंकि आज उनकी शादी को पूरा एक साल जो हो गया था और वो इस दिन को खुशी से सेलेब्रेट करना चाहती थी शाम को जब राकेश घर आया तो बाइक खड़ी करते वक्त उसे सामान की लिस्ट याद आयी और उसने अपनी बाइक वापिस बाज़ार की ओर मोड़ दी और लगा लिस्ट का एक-एक सामान खरीदने....सामान खरीदते खरीदते उसे गजरा बेचने वाला दिख